धूप निकली है तो बादल की रिदा माँगते हो
अपने साये में रहो ग़ैर से क्या माँगते हो
अरसा ऐ हश्र में बक्शिश की तमन्ना है तुम्हें
तुमने जो कुछ न किया उसका सिला माँगते हो
उसको मालूम है 'शहजाद' वो सब जानता है
किसलिए हाथ उठाते हो दुआ माँगते हो
धूप निकली है तो बादल की रिदा माँगते हो
अपने साये में रहो ग़ैर से क्या माँगते हो
अरसा ऐ हश्र में बक्शिश की तमन्ना है तुम्हें
तुमने जो कुछ न किया उसका सिला माँगते हो
उसको मालूम है 'शहजाद' वो सब जानता है
किसलिए हाथ उठाते हो दुआ माँगते हो