भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धूप में निकलो घटाओं में नहाकर देखो / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार= निदा फ़ाज़ली
+
|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
}}धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो <br>
+
|अनुवादक=
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो  
+
|संग्रह=
 +
}}
 +
{{KKCatGhazal}}
 +
<poem>
 +
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
 +
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
  
 +
वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में
 +
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो
  
वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में <br>
+
पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है दिल होते हैं
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो  
+
अपने घर की दर-ओ-दीवार सजा कर देखो
  
 
+
फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है
पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है दिल होते हैं <br>
+
अपने घर की दर-ओ-दीवार सजा कर देखो
+
 
+
 
+
फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है <br>
+
 
वो मिले या न मिले हाथ बढा़ कर देखो
 
वो मिले या न मिले हाथ बढा़ कर देखो
 +
</poem>

19:40, 13 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो

वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो

पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है दिल होते हैं
अपने घर की दर-ओ-दीवार सजा कर देखो

फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है
वो मिले या न मिले हाथ बढा़ कर देखो