भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धूप में शिद्दत बढ़ी तो रोशनी भी बढ़ गई / ओम प्रकाश नदीम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धूप में शिद्दत बढ़ी तो रोशनी भी बढ़ गई
रोशनी के साथ लेकिन तिश्नगी भी बढ़ गई

अब न वो दरियादिली है और न वो बेलौसगी
जब से पैसा बढ़ गया है मुफ़्लिसी भी बढ़ गई

प्यास जब मेरी बढ़ी तो पूछिये मत क्या हुआ
ये हुआ दरिया में पानी की कमी भी बढ़ गई

जब से इस माहौल में मिक़दार इशरत की बढ़ी
तब से मेरी फ़िक्र में आलूदगी भी बढ़ गई

मैनें अपनी इन्किसारी में इज़ाफ़ा क्या किया
दफ़अतन उस बेवफ़ा की बेरुख़ी भी बढ़ गई