धूप से सर्दियों में ख़फ़ा कौन है ?
उन दरख़्तों के नीचे खड़ा कौन है ?
बह रही हो जहाँ कूलरों की हवा,
पीपलों को वहाँ पूछता कौन है ?
तेरी जुल्फ़ों तले बैठकर यूँ लगा,
अब दरख़्तों तले बैठता कौन है ?
आप जैसा हँसी हमसफ़र हो अगर,
जा रहे हैं कहाँ सोचता कौन है ?
रात कैसे कटी और कहाँ पर कटी,
अजनबी शहर में पूछता कौन है ?
आप भी बावफ़ा ’बल्ली’ भी बेगुनाह,
सारे किस्से में फिर बेगुनाह कौन है ?