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धूमिल की कुछ कविताएँ
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* [[यात्री का वक्तव्य / धूमिल ]]
1 दिनचर्या
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* [[क़िस्सा ए जनतन्त्र / धूमिल]]
 
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* [[विद्रोह / धूमिल ]]
 
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* [[ग़रीबी / धूमिल ]]
सुबह जब अंधकार कहीं नहीं होगा,
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* [[आश्वस्ति / धूमिल ]]
 
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* [[सार्वजनिक ज़िन्दगी / धूमिल ]]
हम बुझी हुई बत्तियों को
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* [[मैंने घुटने से कहा / धूमिल]]
 
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* [[हरित क्रान्ति / धूमिल]]
इकट्ठा करेंगे और
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* [[उसके बारे में / धूमिल]]
 
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* [[पटकथा / धूमिल]] (लम्बी रचना)
आपस में बांट लेंगे.
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* [[मोचीराम / धूमिल]]
 
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* [[कुछ सूचनाएँ / धूमिल ]]
 
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* [[हर तरफ धुआं है / धूमिल ]]
दुपहर जब कहीं बर्फ नहीं होगी
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* [[रोटी और संसद / धूमिल ]]
 
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* [[भेंट / धूमिल ]]
और न झड़ती हुई पत्तियाँ
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* [[गाँव / धूमिल ]]
 
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* [[घर में वापसी / धूमिल]]
आकाश नीला और स्वच्छ होगा
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* [[खेवली / धूमिल]]
 
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* [[सिलसिला / धूमिल]]
नगर क्रेन के पट्टे में झूलता हुआ
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* [[धूमिल की अन्तिम कविता / धूमिल ]]
 
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* [[कुछ सूचनाएं / धूमिल ]]
हम मोड़ पर मिलेंगे और
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* [[किस्सा जनतंत्र / धूमिल ]]
 
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* [[बीस साल बाद / धूमिल]]
एक दूसरे से ईर्ष्या करेंगे.
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* [[घर में वापसी / धूमिल ]]
 
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* [[दिनचर्या / धूमिल ]]
 
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* [[सच्ची बात / धूमिल ]]
 
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* [[मेरे घर में पाँच जोड़ी आँखें हैं / धूमिल ]]
रात जब युद्ध एक गीत पंक्ति की तरह
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* [[कविता के भ्रम में / धूमिल]]
 
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* [[पुरबिया सूरज / धूमिल]]
प्रिय होगा हम वायलिन को
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रोते हुए सुनेंगे
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अपने टूटे संबंधों पर सोचेंगे
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दुःखी होंगे.
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2 नगर-कथा
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सभी दुःखी हैं
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सबकी वीर्य-वाहिनी नलियाँ
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सायकिलों से रगड़-रगड़ कर
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पिंची हुई हैं
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दौड़ रहे हैं सब
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सम जड़त्व की विषम प्रतिक्रिया :
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सबकी आँखें सजल
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मुट्ठियाँ भिंची हुई हैं.
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व्यक्तित्वों की पृष्ठ-भूमि में
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तुमुल नगर-संघर्ष मचा है
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आदिम पर्यायों का परिचर
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विवश आदमी
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जहाँ बचा है.
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बौने पद-चिह्नों से अंकित
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उखड़े हुए मील के पत्थर
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मोड़-मोड़ पर दीख रहे हैं
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राहों के उदास ब्रह्मा-मुख
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‘नेति-नेति' कह
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चीख रहे हैं.
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3 गृहस्थी : चार आयाम
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मेरे सामने
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तुम सूर्य - नमस्कार की मुद्रा में
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खड़ी हो
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और मैं लज्जित-सा तुम्हें
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चुप-चाप देख रहा हूँ
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(औरत : आँचल है,
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जैसा कि लोग कहते हैं - स्नेह है,
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किन्तु मुझे लगता है-
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इन दोनों से बढ़कर
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औरत एक देह है)
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मेरी भुजाओं में कसी हुई
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तुम मृत्यु कामना कर रही हो
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और मैं हूँ-
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कि इस रात के अंधेरे में
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देखना चाहता हूँ - धूप का
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एक टुकड़ा तुम्हारे चेहरे पर
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रात की प्रतीक्षा में
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हमने सारा दिन गुजार दिया है
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और अब जब कि रात
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आ चुकी है
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हम इस गहरे सन्नाटे में
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बीमार बिस्तर के सिरहाने बैठकर
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किसी स्वस्थ क्षण की
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प्रतीक्षा कर रहे हैं
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न मैंने
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न तुमने
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ये सभी बच्चे
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हमारी मुलाकातों ने जने हैं
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हम दोनों तो केवल
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इन अबोध जन्मों के
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माध्यम बने हैं
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धूमिल की अंतिम कविता
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"शब्द किस तरह
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कविता बनते हैं
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इसे देखो
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अक्षरों के बीच गिरे हुए
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आदमी को पढ़ो
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क्या तुमने सुना की यह
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लोहे की आवाज है या
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मिट्टी में गिरे हुए खून
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का रंग"
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लोहे का स्वाद
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लोहार से मत पूछो
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उस घोड़े से पूछो
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जिसके मुँह में लगाम है.
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(साभार - कविता संग्रह - कल सुनना मुझे, युगबोध प्रकाशन, वाराणसी, 1977)
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22:46, 10 जनवरी 2018 का अवतरण

सुदामा पाण्डेय
Sudama pandey dhoomil.jpg
जन्म 09 नवम्बर 1936
निधन 10 फरवरी 1975
उपनाम धूमिल
जन्म स्थान खेवली, जिला वाराणसी, उत्तरप्रदेश
कुछ प्रमुख कृतियाँ
संसद से सड़क तक (1972), कल सुनना मुझे, सुदामा पाण्डे का प्रजातंत्र (1983)
विविध
कल सुनना मुझे काव्य संग्रह के लिये 1979 का साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से से विभूषित।
जीवन परिचय
धूमिल / परिचय
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