भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धृतराष्ट्र होना आसान है गांधारी होने से / मृदुला शुक्ला

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धूल, धुएँ और कुहासे से भरे मौसमों में
आसान होना है जीवन
जब सब धुंधला सा हो, आप गढ़ पाते हैं
मनोनुकूल परिभाषाएँ
अपने अननूभूत सत्यों के

सहज होता है कहना
ठंडा पड़ा सूरज किन्नरों के साथ की थाली है
बजते हुए किसी पुत्र जन्मोत्सव पर

अपने चेहरे पर उग आए काँटो को
मान लेना खरोंच भर
पिछली हारी हुई लड़ाई का
सामने रखे आदमकद आईने में

आईने में भी हम खुद को देख
पाते हैं इच्छानुसार
घटा चढ़ा कर
पीछे से आता प्रकाश का स्रोत भर

कठिन समय में हथियार डालते हुए
आप खुद को पाते हैं बेबस, लाचार
बदलने में दृश्य को
आइना झूठ नहीं बोलता
वो समझता है पीछे से आती प्रशाश की भाषा मात्र

मैं कल्पना करता हूँ
एक दिन प्रकृति उतार ले, सूर्या, चंद्रमा
प्रकाश के तमाम स्त्रोत्र आकाश से
और टाँग दे उनकी जगह उनके धुँधले प्रतिबिम्ब

निःसंदेह धृतराष्ट्र होना आसान है गांधारी होने से