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धृष्ट नायक / रसलीन

भोर उठि आए झूंठी बातन बनाए दोऊ,
हाथ सिर ल्याइ परि पाय मोहि छरिगो।
साँझ गए रसलीन यातें सब भूल काहु
कुलटा कलंकिन के जाय पग परिगो।
औरो तो परेखो कछु आवत न मोको एक,
भय अद्भुत आनि मेरे हिये भरिगो।
अब ही तो माथे को महावर न छूटी ह्वै है
एरी इन्हीं पायन को परिबो बिसरिगो॥58॥