ध्यान की उष्मा कर्म की उर्जा / ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति
ध्यान की उष्मा से उर्जस्वलित होने पर.
ध्यान की उष्मा से कर्म की ऊर्जा प्रज्वलित होने पर.
यही वह परम केन्द्र बिन्दु है,
जो अपर में चरम की ओर
और अधो में निम्न की ओर जाता है.
मन किससे पूछ कर प्रग्यायित हो?
केन्द्र की किस धारा में प्रवाहरत हो.?
सात्विक वृतियों का ध्यान
निहित केन्द्रीय शक्ति को जागृत कर,
दिव्य वसुधारा में प्रवाहमान हो तो
अखंड आध्यात्म और ध्याता की आत्मा में
सैट का बल देता है.
यह ध्यान ही सहज समाधि बन जाती है.
तामसी वृत्तियों का ध्यान
निहित केन्द्रीय शक्ति में,
कषायों , कल्मष ताओं , छल, प्रवंचनाओं
मोह के आवरण पर आवरण डाल कर
आत्मा की पहचान भुला देता है.
यह विकृत ध्यान ही सहज व्याधि बन जाती है.
प्रतिबोध दे भगवन!
कि सात्विक ध्यान की उष्मा से
एकाग्र चिंतन से,
प्रज्ञा धारा का संवहन कर ,
काल के आर पार चली जाऊं .
यदि काल में ही रहूँ तो
कर्म की ऊर्जा रूपी गायत्री का
अनादी सिद्ध मन्त्र उच्चारित कर
आगम निगम में एक दिव्य
साम गान की झंकार भर दूँ .
फ़िर तो ब्रह्म को भी धरती पर चलना होगा.
स्तब्ध बोध
देह के सीमांतों मैं रह कर असीम की खोज
काल के अभिग्रह में बंद होकर कालातीत की खोज
प्रमत्त, उन्मत्त क्षणों की तन्मय प्रक्रिया में
हम यह भूल जाते हैं,
कि
गहरे से गहरे प्रणय और प्यार के संवेदन भी
एक दिन निदान चुक जाते हैं.
इनकी भी एक सीमा है,
क्योंकि
इनके स्थूल परमाणु
गुरुत्वाकर्षण की सीमा पर ही रुक जाते हैं.
अन्तर केवल इतना है कि
गुरुत्वाकर्षण की सीमा के इस पार
हम परिणाम की इच्छा करते हैं,
और सीमा के उस पार
हम इच्छा का परिणाम जानते हैं.
सच तो यह है कि
ईश्वर की तरह निर्मोही
होकर ही कोई अमोघ प्यार दे सकता है.
स्तब्ध बोध से विश्रब्ध हूँ,
स्तब्ध हूँ,
कि निर्मोही भी कितना मोही हो सकता है.