http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B0_/_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%B2&feed=atom&action=historyध्रुवांतर / कुमार विकल - अवतरण इतिहास2024-03-28T08:53:38Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B0_/_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%B2&diff=25982&oldid=prevसम्यक: New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विकल |संग्रह= एक छोटी-सी लड़ाई / कुमार विकल }} मैं ख...2008-08-02T08:18:51Z<p>New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विकल |संग्रह= एक छोटी-सी लड़ाई / कुमार विकल }} मैं ख...</p>
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|रचनाकार=कुमार विकल<br />
|संग्रह= एक छोटी-सी लड़ाई / कुमार विकल<br />
}}<br />
<br />
मैं खुले विस्तार की हर चीज़ को निहारता<br />
<br />
विमुग्ध,आत्म—विभोर<br />
<br />
जीने के कर्म से अभिभूत<br />
<br />
सारी दिशाओं में फैल कर<br />
<br />
किसी एक बिंदु पर सिमती हुई गंध<br />
<br />
परिवेश के हर पेड़—पौधे को को समर्पित. <br />
<br />
किंतु तुम<br />
<br />
संत्रस्त— अपनेआप से भयभीत,<br />
<br />
आतंकित<br />
<br />
अपने नर्क में अभिशप्त<br />
<br />
टोकरी में बंद साँप<br />
<br />
ज़हर की अभिव्यक्ति को आतुर.<br />
<br />
कौन कहता है कि हम जुड़वाँ सहोदर<br />
<br />
और केवल भ्रम यह ध्रुवांतर?</div>सम्यक