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नंगे-उघड़े लोग / रूपम मिश्र

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हर त्रासदी में
ये पेट खोलकर बैठ जाते हैं !
बहुत बड़ा होता है इनका पेट !

इतना बड़ा कि खरबों के खर्च से बना
स्टेट्यू ऑफ़ यूनिटी भी
बौना नज़र आया

अरे, मैं झूठ नहीं कह रही हूँ
हमेशा इन्होंने राष्ट्र की बेइज़्ज़्ती कराई है !
इनकी नंगई तो देखो,
ये कहते हैं — खाना नहीं मिला

इन उघड़े लोगों के लिए क्या-क्या नहीं किया गया
योजना बनी, दीवार बनी, और पुरानी दीवारों को पोता गया,
दमकते हुए पौराणिक चरित्रों के आदमक़द चित्रों से !

और कितनी सुविधा लेगें ?!
अरे, मॉल में भी तो जाने से नहीं रोका जाता इन्हें !
योजनाएँ इतनी बनीं की माननीयों को याद तक नहीं
उन योजनाओं के नाम
और वे योजनाएं सिर्फ़ तब याद आईं
जब वे सत्ता के बाहर हुए
और प्रवर्तन निदेशालय के छापे पड़े !

इतनी रसद बाँटी गई इनमें
कि कोटेदारों को अपच की शिकायत होने लगी,
प्रधानों को दिमाग भन्ना गए
उस रसद में अपने हिस्सेदारी तय करते हुए !

और बेचारे राष्ट्र भाग्य विधाता को
अट्ठारह घण्टे काम का दावा करके भी
जनता से ही कहना पड़ा
कि आप ही करे इन भूखों-नंगो का इन्तज़ाम

सरकार व्यस्त है लॉकडाऊन लागू करने में
और बेचारे प्रधानमन्त्री ये तय करने में
कि अब अगला बॉलकनी कारनामा क्या कराऊँ !
ताक़त कैसे दिखाऊँ !?