भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नंदा देवी-1 / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:21, 12 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऊपर तुम, नंदा!
नीचे तरु-रेखा से
मिलती हरियाली पर
बिखरे रेवड़ को
दुलार से टेरती-सी
गड़रिए की बाँसुरी की तान:

और भी नीचे
कट गिरे वन की चिरी पट्टियों के बीच से
नए खनि-यंत्र की
भठ्ठी से उठे धुएँ का फंदा।
नदी की घेरती-सी वत्सल कुहनी के मोड़ में
सिहरते-लहरते शिशु धान।

चलता ही जाता है यह
अंतहीन, अन-सुलझ
गोरख-धंधा!

दूर, ऊपर तुम, नंदा!