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नई नई नित तान सुनावै / भारतेंदु हरिश्चंद्र

नई नई नित तान सुनावै ।
अपने जाल मैं जगत फँसावै ।
नित नित हमैं करै बल-सून ।
क्यों सखि सज्जन नहिं कानून ।