Last modified on 13 मार्च 2020, at 23:25

नए अवतार में चालबाज / लक्ष्मीकान्त मुकुल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:25, 13 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मीकान्त मुकुल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब से फैली है अफवाह
कि मुजफ्फरपुर की शाही लीचियों के खाने से
फैल रहा है बच्चों में चनकी रोग
मैंने छोड़ दिया है लीची वाले ठेले की तरफ देखना
वैसे लीची पसंद है मुझे बचपन से
लिचियों के स्वाद में होता है पहले प्यार जैसा सुखद एहसास, जैसे जीवन में पतझार के बाद पेड़ों पर आए हो कोमल पत्ते, मानसून की पहली बौछार से
भीग गए हों अंग-प्रत्यय

किसने फैला गया होगा इन अफवाहों को
आम बागान मालिकों ने
या लीची की खेती कर रहे किसानों के मुखालिफों ने कि फल के व्यापार को नियंत्रित कर रही बाज़ार व्यवस्था ने या, शेयर बाज़ार के सट्टेदारों ने,
किसान विरोधी सरकारों ने
अंधेरे कोने से हवा उड़ाते कृषि हत्यारे जल्लादों ने

यह कौन-सी साजिश है कि किसानों की उत्पादित लीची को फेकवाया जा रहा है गड्ढे में और डिब्बाबंद लीचीयों को दिया जा रहा है बढ़ावा

शातिराना दिमाग वाले जल्लाद
हड़प लेना चाहते हैं सुरसा कि तरह
हमारी खेतिहर व्यवस्थाएँ
कल वे हवा बाँध देंगे
कि हमारे धान गेहूँ के अनाजों से निकल रहे हैं कीड़े कल वे शोर मचाएंगे कि दलहन तिलहन के दानों से आ रही है दुर्गंध
हमारे अमरूद, हमारी बेर के फलों को विषाक्त करार देंगे, हमारे लिसोध की फलियों से उसे आएगी बदबू

बाजार व्यवस्था कि पीठ पर
पालथी मारे बैठे हैं जल्लाद
नए अवतार में नई चाल बाजियाँ चलते हुए हमारा ध्यान भटकाते हुए नित्य नई युक्तियों से।