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नए दौर के पुराने गीतकवि के इर्द-गिर्द / राम सेंगर

मरे पड़े थे
या गाफ़िल थे
छींटे मारे नए गीत ने
तो उठ बैठे ।

हटें, हवा आने दें,
काहे घेर लिया है
नशा गोत का उतर रहा
दुर्योग टला ।
तार-तार हो चुकीं
चुनौती की मुद्राएँ
क्या हिसाब देंगे ये अब
अगला-पिछला ।
मँच-तराई-
अय्याशी ने
खोले-फेंके इनके कलगीदार मुरैठे ।

ताक़त-पैसा, नैमत
थी ऊपरवाले की
क़िस्से फ़रफन्दों के इतने
कौन कहे ।
इन्हें मौज़ में
अहमसिद्धि के
स्वाँग फले भी
तृप्त हो गए
किए-धरे पर मगन रहे ।
गड्ढे भरे कि
खोदे इनने
बन्धी हवा में
तुक-स्वर-लय के कान उमेंठे ।

ख़ूब लोकप्रियता को
रातोंरात भुनाया
डींग, होड़ के ज़ज़्बे में
बदली न कभी ।
गीत कहकशाँ का गोटा
छाती पर बान्धे
दिपें निराले
अनबदले जड़जन्तु सभी
नौबत
परम शान्ति की आई
कस कोई जाकर इनकी जाँगर में पैठे ।

मरे पड़े थे
या गाफ़िल थे
छींटे मारे नए गीत ने
तो उठ बैठे ।