भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नक़्श-ए-महरूमी-ए-तक़दीर को तदबीर में रख / नसीम सय्यद
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:07, 19 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नसीम सय्यद |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> न...' के साथ नया पन्ना बनाया)
नक़्श-ए-महरूमी-ए-तक़दीर को तदबीर में रख
सई-ए-इम्काँ से गुज़र शौक़ को तामीर में रख
अपने एहसास-ए-रफ़ाक़त का बना मुझ को गवाह
और फिर मेरी गवाही मेरी तक़्सीर में रख
रंग सच्चे हों तो तस्वीर भी बोल उठती है
बे-यक़ीं रंगों की हैरत को न तस्वीर में रख
और भी क़र्ज़ हैं तहरीर के ऐ साहिब-ए-इल्म
इक फक़त तजि़्करा-ए-इश्क़ न तहरीर में रख