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नख पै धरि के श्री गिरिराज / ब्रजभाषा

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

नख पै धरि के श्री गिरिराज, नाम गिरिधारी पायौ है॥ टेक
सुरपति पूजन बन्द करायौ, श्री गोवरधन कू पुजवाओ॥
नन्द बाबा और जसुदा मात, संग में बलदाऊ जी भ्रात।
सकल परिवार-कुटुम लै साथ, करी पूजा विधि सौं निज हाथ।

दोहा- एक रूप से पूजन है, एक ते रहे पुजाय।
सहस भुजा फैलाय के माँग-माँग के खाँय॥

सवा लाख मन सामग्री को भोग लगायौ है॥ नख पै.
ब्रजवासी ब्रज गोपी आई, वह पकवान डला भर लाईं।
चली कोई उल्टी पटिया पार, चली कोई इक द्रग अंजन सार।
कान में नथनी झलकेदार, नाक में करनफूल लिये डार।

दोहा- उलटे-सीधे अंग में, गहने लीने डार।
उलटे पहरे वस्त्र सब, उलटौ कर शृंगार॥
प्रेम मगन वश भईं बदन कौ होश गमायौ है॥ नख पै.
पूजा करि परिक्रमा दीनी, करि दण्डौती स्तुती कीनी।
सबन मिलि बोलौ जब जैकार, बढ़ौ सुरपति कौ क्रोध अपार।
मेघमालों से कहै ललकार, ब्रज कौ करि देउ पयिाढार॥

दोहा- उमड़ घुमड़ि कर घेर ब्रज, उठी घटा घनघोर
चम-चम चमकै बीजुरी, चौंके ब्रज के मोर॥

मूसल धार अपार मेह सुरपति बरसायो है॥ नख पै.
ब्रजवासी मन में घबराए, कृष्ण चन्द्र के जौरें आए।
कोप इन्दर ने कीयो आज, सहाई को ब हो महाराज।
छोड़ि ब्रज कहाँ कू जामें भाज, आपके हाथ हमारी लाज॥

दोहा- लाज आपके हाथ है, ब्रज को लेउ बचाय।
जो उपाय कछु ना करौ, पल में बज बहि जाय॥

श्री गिर्राज मुकुट बारे ने ध्यान लगायौ है॥ नख पै.
ब्रजवासिन मन धीर धरायौ, सबरौ ब्रज इकठौर बुलायौ।
लियो गोवरधन नख पै धार, दाऊ हल मूसर लियौ संभार॥
संग में गोपी, गऊ और ग्वारि, कियौ गिरि तले ब्रजविस्तार॥

दोहा- सात रात और सात दिन, बरसै मेघ अघाय।
जैसे ताते तबे पै, बूँद छन्न ह्वै जाय॥

गोप करें आनन्द नाँय छींटा तक आयौ है॥ नख पै.
मधुर-मधुर बाँसुरी बजाई, सब ब्रजमें आनन्द रह्यौ छाई।
इन्द्र ने नारद लियौ बुलाय, खबर तुम ब्रज की लाऔ जाय।
चले मुनि मृत्युलोक को धाय, ब्रज की लीला देखी आय॥

दोहा- ब्रज की लीला देखके, उल्टौ कियौ पयान।
इन्द्रपुरी में जायकै, मुनि ने कियौ बखान॥

तीन लोक करतन के करता तै बैर बढ़ायै हे॥ नख पै.
इन्द्र ने इन्द्रासन छोड़ा, सुरभी श्याम बरनु घोड़ा।
चलौ अहरापति हाथी साथ, इन्द्र मन थरर-थरर थर्रात।
पहुँचौ जहाँ त्रिलोकी नाथ, इन्द्र ने आय नवायौ माथ॥

दोहा- चरनन में वो गिर परौ, क्षमा करौ अपराध।
हे जगकर्ता आपकी, लीला अगम-अगाध॥

घासीराम गोरधनवासी ने हरिजस गयौ है॥ नख पै.