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नगर के नथुनों में पहुंचे प्राण / मालचंद तिवाड़ी

(अशोक वाजपेयी का काव्य-पाठ सुनने के बाद)

कर्फ्यू था
खुशबू लापता ।

हवा में गश्त थी
समकालीनता की ।

आलोचना के फौजी
ले रहे थे घर-घर तलाशी ।
यशस्वी नहीं था कवि
सौंपने से पहले बयाज
सूंघने पर खुशबू नहीं आई
उस में जनरल साहब को ।
किया कवि पर उपकार
फेंक दी खिड़की से बाहर !

हवा में हिल-मिल गई खुशबू
नगर के नथुनों में पहुंचे प्राण ।

अभी भी चालू है-
समकालीनता ख़ी पेट्रोलिंग तो !

अनुवादः नीरज दइया