भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नग़मों की जगह दिल से अब आह निकलती है / 'क़मर' मुरादाबादी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:35, 27 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= 'क़मर' मुरादाबादी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नग़मों की जगह दिल से अब आह निकलती है,
जब साज़ बदलता है, आवाज़ बदलती है ।
है मेरी मोहब्बत का उन पर भी असर शायद,
बेवजह ख़ामोशी से, इक बात निकलती है ।
ये दिल तो मेरा दिल है, ख़ामोश रहे क्यूँकर,
पत्थर को अगर तोड़ो, आवाज़ निकलती है ।
मैंने तेरी नज़रो को यूँ शौक से देखा है,
इनसे मेरे ख़्वाबों की ताबीर<ref>असर, प्रभाव</ref> निकलती है ।
है ज़ीस्त<ref>्जीवन, ज़िन्दगी</ref> की राहो में इक मोड़ मोहब्बत भी,
होश आता है इंसा को जब राह बदलती है ।
अब किससे यहाँ कीजे, उम्मीद वफ़ाओं की,
जब वक़्त बदलता है हर चीज़ बदलती है ।
फ़ितरत<ref>स्वभाव</ref> के तकाज़ो पर कहता हूँ क़मर गज़लें,
कैफ़ियते-दिल<ref>दिल की हालत</ref> मेरी अशआर में ढलती है ।
शब्दार्थ
<references/>