भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नग्न तरुवर मैं हूँ नहीं / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavi...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

16:41, 17 फ़रवरी 2018 का अवतरण

{KKGlobal}}


नग्न तरुवर मैं हूँ नहीं
शरद में ठिठुरता विकल
जिजीविषा हूँ कोंपलों की-
मैं वसंत की प्रतीक्षा प्रबल ।
अश्रु लेकर कल खड़ा था
पीत-पतझर की राह में
सहलाएगा गर्म सूरज
अब भरके अपनी बाँह में ।
बर्फ अवसादों की थी जो,
अब हँसी से गल जाएगी
ऊषा अब उन्मुक्त है;
शीत-निशा ढल जाएगी ।
किरणें कोमल पीठ पर जब
अपनी उँगलियाँ फेरेंगी
गुदगुदाती लिपट लूँगी
जब तीखी हवाएँ हेरेंगी ।
मुक्त हूँ- जड़ बंधनों से
मैं हूँ नर्म होंठों की छुवन
दिव्य-प्रेम पथ की नर्तकी हूँ
थिरक-थिरक करती हूँ नर्तन।
बाँधकर आशा के घुँघरू
मदमस्त अब जो पग धरे
गुंजित होंगे पर्वत-शिखर
गाएँगे प्रेम-तरु हरे-भरे।