Last modified on 23 अक्टूबर 2017, at 14:45

नज़दीकियाँ दूरियों का बहाना भर हैं / सुरेश चंद्रा

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:45, 23 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश चंद्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक धुली हुई सुबह पर, हम ढ़ेरों शब्द रख देते हैं
और दिन मटमैला होते हुए, रात का बदन काला कर जाता है

नज़दीकियाँ, दूरियों का बहाना भर हैं
और शब्द, अकारण ही कारण.