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नज़र में ज़ख़्म-ए-तबस्सुम छुपा छुपा के मिला / मोहसिन नक़वी

नज़र में ज़ख़्म-ए-तबस्सुम छुपा छुपा के मिला
ख़फ़ा तो था वो मगर मुझ से मुस्कुरा के मिला

वो हमसफ़र के मेरे तंज़ पे हंसा था बहुत
सितम ज़रीफ़ मुझे आइना दिखा के मिला

मेरे मिज़ाज पे हैरान है ज़िन्दगी का शऊर
मैं अपनी मौत को अक्सर गले लगा के मिला

मैं उस से मांगता क्या? खून्बहा जवानी का
के वो भी आज मुझे अपना घर लुटा के मिला

मैं जिस को ढूँढ रहा था नज़र के रास्ते में
मुझे मिला भी तो ज़ालिम नज़र झुका के मिला

मैं ज़ख़्म ज़ख़्म बदन ले के चल दिया “मोहसिन”
वो जब भी अपनी क़बा पर कँवल सजा के मिला