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नज़्म में उतरेगा दिल का दर्द सारा आज फिर / अमित गोस्वामी

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नज़्म में उतरेगा दिल का दर्द सारा आज फिर
धुल के निखरेगा नया इक इस्तिआरा1 आज फिर

जिनकी तहरीरों ने क़िस्मत की लकीरें काट दीं
कर रहा हूँ उन ख़तों से इस्तिख़ारा2 आज फिर

इश्क़ के सूद−ओ−ज़ियाँ में ज़ेह्न−ओ−दिल उलझे रहे
और दिल ने कर लिया अपना ख़सारा3 आज फिर

आज फिर मैं आसमाँ को रात भर तकता रहा
रात भर टूटा नहीं कोई सितारा आज फिर

फिर खुली पलकों के आगे ख़्वाब मँडराते रहे
कर गई है नींद आँखों से किनारा आज फिर

एक तन्हा दिल और उस पर रोज़ रोज़ ऐसे अज़ाब
कल का दिन भी दर्द−ए−फ़ुरक़त में गुज़ारा, आज फिर?



1. रूपक 2. पवित्र पुस्तक से भाग्य देखना 3. नुक्सान