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"नज्म बहुत आसान थी पहले / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

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कहीं अचानक बम फटते हैं
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कोख में माओं के सोते बच्चे डरते हैं
नये-नये नारे रटते हैं<br>
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बहुत से शहरों-बहुत से मुल्कों से अब होकर<br>
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नये-नये नारे रटते हैं
नज्म मेरे घर जब आती है<br>
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बहुत से शहरों-बहुत से मुल्कों से अब होकर
इतनी ज्यादा थक जाती है<br>
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मेरी लिखने की टेबिल पर
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शहर के सब से बूढे शहरी की पलकों पर
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आँसू बन कर
 
सो जाती है।
 
सो जाती है।
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22:33, 13 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

नज्म बहुत आसान थी पहले
घर के आगे
पीपल की शाखों से उछल के
आते-जाते बच्चों के बस्तों से
निकल के
रंग बरंगी
चिडयों के चेहकार में ढल के
नज्म मेरे घर जब आती थी
मेरे कलम से जल्दी-जल्दी
खुद को पूरा लिख जाती थी,
अब सब मंजर बदल चुके हैं
छोटे-छोटे चौराहों से
चौडे रस्ते निकल चुके हैं
बडे-बडे बाजार
पुराने गली मुहल्ले निगल चुके हैं
नज्म से मुझ तक
अब मीलों लंबी दूरी है
इन मीलों लंबी दूरी में
कहीं अचानक बम फटते हैं
कोख में माओं के सोते बच्चे डरते हैं
मजहब और सियासत मिलकर
नये-नये नारे रटते हैं
बहुत से शहरों-बहुत से मुल्कों से अब होकर
नज्म मेरे घर जब आती है
इतनी ज्यादा थक जाती है
मेरी लिखने की टेबिल पर
खाली कागज को खाली ही छोड के
रुख्ासत हो जाती है
और किसी फुटपाथ पे जाकर
शहर के सब से बूढे शहरी की पलकों पर
आँसू बन कर
सो जाती है।