भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी-सा बहता हुआ दिन / सत्यनारायण

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:58, 4 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्यनारायण }} {{KKCatNavgeet}} <poem> कहाँ ढूँढ़ें-- नदी-सा ब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहाँ ढूँढ़ें--
नदी-सा
      बहता हुआ दिन ।

वह गगन भर धूप
सेनुर और सोना,
धार का दरपन
भँवर का फूल होना,
      हाँ,
      किनारों से
      कथा कहता हुआ दिन !

सूर्य का हर रोज़
नंगे पाँव चलना
घाटियों में हवा का
कपड़े बदलना,
      ओस
      कुहरा, घाम
      सब सहता हुआ दिन !

कौन देगा
मोरपंख से लिखे छन
रेतियों पर
सीप-शंखों से लिखे छन,
      आज
      कच्ची भीत-सा
      ढहता हुआ दिन !