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नदी तरेर ऊ गई / कालीप्रसाद रिजाल

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नदी तरेर ऊ गई म वारी नै बसिरहेँ
ऊ हाँसेर बिदा भई म आँसुमा खसिरहेँ
मायाले दिएको फूल मनभरि बिझिरह्यो
भुल्न त खोजेँ कति यादहरू दुखिरह्यो
मसानसरी भो जिन्दगी म लास झैँ जलिरहें
रातभर ऊ आए झैँ, आए झैँ लागिरह्यो
सपनामा पनि मलाई डाके झैँ लागिरह्यो
बलेर मैन बत्ती झैँ म तपतपी झरिरहेँ
ओठ काँपी नै रहेँ मुटु खालि धड्कियो
भन्छु भन्थेँ जुन कुरा भित्र कहीँ अड्कियो
म एक्लो मूर्ती झैँ उदास किनारमा परिरहेँ