http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BE_%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%80-1_/_%E0%A4%85%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A5%87%E0%A4%AF&feed=atom&action=historyनन्दा देवी-1 / अज्ञेय - अवतरण इतिहास2024-03-28T12:00:03Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BE_%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%80-1_/_%E0%A4%85%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A5%87%E0%A4%AF&diff=144954&oldid=prevDkspoet: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=पहले मैं सन्नाटा ब...' के साथ नया पन्ना बनाया2012-08-09T11:45:44Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=पहले मैं सन्नाटा ब...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
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|रचनाकार=अज्ञेय<br />
|संग्रह=पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ / अज्ञेय<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<Poem><br />
ऊपर तुम, नन्दा!<br />
नीचे तरु-रेखा से<br />
मिलती हरियाली पर<br />
बिखरे रेवड को<br />
दुलार से टेरती-सी<br />
गड़रिये की बाँसुरी की तान :<br />
और भी नीचे<br />
कट गिरे वन की चिरी पट्टियों के बीच से<br />
नये खनि-यन्त्र की<br />
भट्ठी से उठे धुएँ का फन्दा।<br />
नदी की घरेती-सी वत्सल कुहनी के मोड़ में<br />
सिहरते-लहरते शिशु धान।<br />
चलता ही जाता है यह<br />
अन्तहीन, अन-सुलझ<br />
गोरख-धन्धा!<br />
दूर, ऊपर तुम, नन्दा!<br />
<br />
'''बिनसर, सितम्बर, 1972'''<br />
</poem></div>Dkspoet