भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नन्दा देवी-1 / अज्ञेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 ऊपर तुम, नन्दा!
नीचे तरु-रेखा से
मिलती हरियाली पर
बिखरे रेवड को
दुलार से टेरती-सी
गड़रिये की बाँसुरी की तान :
और भी नीचे
कट गिरे वन की चिरी पट्टियों के बीच से
नये खनि-यन्त्र की
भट्ठी से उठे धुएँ का फन्दा।
नदी की घरेती-सी वत्सल कुहनी के मोड़ में
सिहरते-लहरते शिशु धान।
चलता ही जाता है यह
अन्तहीन, अन-सुलझ
गोरख-धन्धा!
दूर, ऊपर तुम, नन्दा!

बिनसर, सितम्बर, 1972