भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नन्दा देवी-4 / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:18, 9 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=पहले मैं सन्नाटा ब...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह दूर
शिखर
यह सम्मुख
सरसी
वहाँ दल के दल बादल
यहाँ सिहरते
कमल
वह तुम। मैं
यह मैं। तुम
यह एक मेघ की बढ़ती लेखा
आप्त सकल अनुराग, व्यक्त;
वह हटती धुँधलाती क्षिति-रेखा :
सन्धि-सन्धि में बसा
विकल निःसीम विरह।

बिनसर, सितम्बर, 1972