भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नन्हें फूल / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम हैं प्यारे नन्हें फूल
मुसकाना, खिलना ही सीखा
कभी न करते कोई भूल
सर सर-सर जब हवा डोलती
झूम झूम गा उठते गीत
हमें देख गाने लगते हैं
उड़ते पंछी प्यारे मीत
चन्दन सी लगती है हमको
भारत भू की प्यारी धूल
इसकी गंध नहीं छोड़ेंगे
चाहे चुभे हजारो शूल