भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नभ आंगनमे पवनक रथ पर / मायानन्द मिश्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:09, 29 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मायानन्द मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <po...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नभ आंगनमे पवनक रथपर
कारी कारी बादरि आयल।
देखितहि धरणीक बिषम पियास,
सजल-सजल भए गेल आकाश
बिजुरी केर कोमल कोरामे डुबइत
सुरुज किरण अलसायल।
झिहरि-झिहरि सुनि गगनक गान,
धरणि अधर पर मृदु मुसुकान
आकुल कोमल दूबरि दूभिक मनमे
नव-नव आशा उमड़ल।