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नम मिट्टी पत्थर हो जाये ऐसा कभी न हो / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
नम मिट्टी पत्थर हो जाये ऐसा कभी न हो
मेरा गाँव, शहर हो जाये ऐसा कभी न हो।
हर इंसान में थोड़ी बहुत तो कमियाँ होती है
वो बिल्कुल ईश्वर हो जाये ऐसा कभी न हो।
बेटा, बाप से आगे हो तो अच्छा लगता है
बाप के वो ऊपर हो जाये ऐसा कभी न हो।
मेरे घर की छत नीची हो मुझे गवारा है
नीचा मेरा सर हो जाये ऐसा कभी न हो।
खेत मेरा परती रह जाये कोई बात नहीं
खेत मेरा बंजर हो जाये ऐसा कभी न हो।
गाँव में जब तक सरपत है बेघर नहीं है कोई
सरपत सँगमरमर हो जाये ऐसा कभी न हो।
सागर जितनी पीड़ा मन में, धैर्य भी उतना ही
मेरा दर्द मुखर हो जाये ऐसा कभी न हो।