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"नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
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− | नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे,खेली होली ! | + | नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली ! |
जागी रात सेज प्रिय पति सँग रति सनेह-रँग घोली, | जागी रात सेज प्रिय पति सँग रति सनेह-रँग घोली, | ||
− | दीपित दीप ,कंज छवि मंजु-मंजु हँस खोली- | + | दीपित दीप, कंज छवि मंजु-मंजु हँस खोली- |
− | मली मुख-चुम्बन- | + | मली मुख-चुम्बन-रोली । |
− | प्रिय-कर-कठिन-उरोज-परस कस कसक मसक | + | प्रिय-कर-कठिन-उरोज-परस कस कसक मसक गई चोली, |
− | एक-वसन रह | + | एक-वसन रह गई मन्द हँस अधर-दशन अनबोली- |
− | कली -सी काँटे की | + | कली-सी काँटे की तोली । |
मधु-ऋतु-रात,मधुर अधरों की पी मधु सुध-बुध खोली, | मधु-ऋतु-रात,मधुर अधरों की पी मधु सुध-बुध खोली, | ||
− | खुले अलक,मुँद | + | खुले अलक, मुँद गए पलक-दल, श्रम-सुख की हद हो ली- |
− | बनी रति की छवि | + | बनी रति की छवि भोली । |
बीती रात सुखद बातों में प्रात पवन प्रिय डोली, | बीती रात सुखद बातों में प्रात पवन प्रिय डोली, | ||
− | उठी सँभाल बाल,मुख-लट,पट,दीप बुझा,हँस बोली | + | उठी सँभाल बाल, मुख-लट,पट, दीप बुझा, हँस बोली |
− | रही यह एक | + | रही यह एक ठिठोली । |
− | ''' | + | '''निराला जी की यह कविता 'जागरण', पाक्षिक, काशी, 22 मार्च 1932 को 'होली' शीर्षक से छपी थी ।''' |
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12:40, 20 मार्च 2011 के समय का अवतरण
नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली !
जागी रात सेज प्रिय पति सँग रति सनेह-रँग घोली,
दीपित दीप, कंज छवि मंजु-मंजु हँस खोली-
मली मुख-चुम्बन-रोली ।
प्रिय-कर-कठिन-उरोज-परस कस कसक मसक गई चोली,
एक-वसन रह गई मन्द हँस अधर-दशन अनबोली-
कली-सी काँटे की तोली ।
मधु-ऋतु-रात,मधुर अधरों की पी मधु सुध-बुध खोली,
खुले अलक, मुँद गए पलक-दल, श्रम-सुख की हद हो ली-
बनी रति की छवि भोली ।
बीती रात सुखद बातों में प्रात पवन प्रिय डोली,
उठी सँभाल बाल, मुख-लट,पट, दीप बुझा, हँस बोली
रही यह एक ठिठोली ।
निराला जी की यह कविता 'जागरण', पाक्षिक, काशी, 22 मार्च 1932 को 'होली' शीर्षक से छपी थी ।