भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नयन-पीर / दीप्ति गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बसा दर्द आँखों की कोर
कहता चलो, चलें उस छोर
कितनी भी बातें बनाते रहो
हँस - हँस के पीड़ा छिपाते रहो
पर आँखों पे किसका चलता है जोर
झपकती पलक कहती कुछ और
बसा दर्द आँखों की कोर
कहता चलो, चलें उस छोर

खारे समन्दर को छलका ले जी भर
देखे न कोई, पूछे न कोई
क्यों सागर ने सीमा लांघी उमड़ कर!
ये बेबस सी बाढ़ आई है क्यों कर?
बसा दर्द आँखों की कोर
कहता चलो, चलें उस छोर!