नयन हैं नशीले नज़ारों से परिचित।
हृदय है हृदय की मुकारों से परिचित।।
तुम्हीं से रहे हम अपरिचित-अपरिचित
यों दिल है हमारा हज़ारों से परिचित।
न परिचय था तुमसे तनिक भी हमारा
हुए हम तुम्हारे इशारों से परिचित।
चले साथ मिलकर मगर है विवशता,
किनारे नहीं हैं किनारों से परिचित।
जबानी कभी भी विवश हो न पाती
जो होती प्रणय के प्रहारों से परिचित।
न बगिया में पतझर का आभास होता
अगर मन न होता बहारों से परिचित।
वही दूर हमसे रहे हैं हमेशा
नहीं जो हमारे विचारों से परिचित!
ग़ज़ल जब सुनो तो हमें याद करना
अभी तक हो तुम गीतकारों से परिचित।