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नया युग, नयी औरत / त्रिभवन कौल

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क्रोध भरी नज़रों से न देखो मुझे
दोष का भागीदार न बनाओ मुझे
तुमने प्यार को समझा, सौदा या क़रार
भावनाहीन व्यक्ति को कभी हुआ है प्यार

तुम शरीर के कायल, मैं प्रेम की मस्तानी
तुम दुष्शासन के प्रतीक, मैं कृष्ण की दीवानी
तुम्हे है पसंद अँधेरा, मुझे चाहिए प्रकाश
कभी तो मेरी कसौटी पर खरे उतरते, काश!

औरत कभी बाजारू नहीं, न वस्तु, ना ही बिकाऊ
मर्दों की इजाद यह सब, जब आये ना वह काबू
माँ, बेटी, पत्नी फिर माँ, जीवन आधार; ज्ञान होना चाहिए
शक्ति के हैं स्वरूप यह सब, ज्ञात होना चाहिए.

प्यार सबमे में निहित है, अलग अलग अंदाज़ है
यह हैं तो है जीवन और संसार का यह साज़ है
औरत को कभी भी कम तुम नहीं आँकना
भविष्य है, रहेगा हमी से, अतीत में न झाँकनाI