Last modified on 30 अक्टूबर 2017, at 13:12

नये हुए थे इन्द्रधनुष हम / कुमार रवींद्र

वही पुरानी
पगडंडी यह
जिस पर हम­तुम साथ चले थे

बरसों पहले की वह घटना
नये हुए थे इन्द्रधनुष हम
सपने थे तब ओस­भिगोये
साँसें भी थीं मीठी पुरनम

हमने संग जो
रची सुबह थी
उसके अनुभव सभी भले थे

पाँव-­पाँव हमने नापी थी
जहां सूर्य रहता
वह घाटी
जहाँ चाँद ने बोई पूनो
छूकर देखी हमने माटी

पर्वत पर थे
चढे. संग हम
ढालों पर सँग-सँग फिसले थे

                      कभी नदी का बहना देखा
बैठे कभी झील के तट पर
बांच हठी रोमांस हमारा
खूब हंसे थे पुरखे पत्थर

थके­हुए
बूढे. सैलानी
देख हमारा पर्व जले थे