Last modified on 13 अक्टूबर 2017, at 09:39

नर्मदा / जया पाठक श्रीनिवासन

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:39, 13 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जया पाठक श्रीनिवासन |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुमने सुनी है
प्रेम कथा
नदी और आदिवासी युवक की
पहाड़ साक्षी है
जंगल ने भी देखा
कि कैसे
युवक का खोल देना
अपने खेत की मेड़
अभिसार का आमंत्रण है
वो मचल कर आती
घुस जाती
उसके खेत में
हरे धान सी लहराती

युवक भी जाता
सांझ उसके किनारे
छेड़ता है बिहाग में गीत
मन का
जाल डालता
नदी के देह की मछलियां चुनता

नदी उसके गाँव को
छूने आती
छूकर लजाती बढ़ जाती बार बार
संकोच से भरी
फिर फिर लौट आती

उसका गोपन प्रेम
केवल वह आदिवासी युवक जानता है
नदी बाँधने वाला महानगर
ये कथा
नहीं समझ सकेगा कभी