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नवम्बर देश / ग्युण्टर ग्रास / उज्ज्वल भट्टाचार्य

वहीं का हूँ मैं ।
सभी नौ<ref>पश्चिम जर्मनी के नौ प्रदेश ।</ref> मिलकर मनाते हैं
हर साल उसे ।

भागना है मुझे लाँघ बाड़े को,
बनाया मैंने ख़ुद जिसे,
लेकिन जाता हूँ उल्टे जूते पहने,
वहाँ से मैं हूँ जहाँ
और बदबू आती है पाखाने की,
छोड़ा जिसे पीछे यहाँ ।

ख़ैर, बना रहता है वह
पहले के ही समान
और फ़ैशन के मुताबिक
जो पनपता तले खाक़ के –
कभी जीन्स में, तो कभी
नीचे क़ायदे की पोशाक के –
तीसरी राईष<ref>हिटलरी जर्मनी को तीसरी राईष (साम्राज्य) कहा जाता था ।</ref> की तस्वीरों में भी
दिखती जिनकी शान ।

नवम्बर के मुर्दे,
चैन हो उनकी सलामत !
जो ज़िन्दा हैं, वही तो
आज बने हुए हैं आफ़त ।

लेकिन ये तो वे नहीं,
अब तो ऐसे उठे हैं जाग
अपनी करतूतों से
जलाते हैं वैसी ही आग़ ।

हिसाब हुआ नहीं,
मुनाफ़े पर टैक्स भी है ग़ायब
उस कर्ज़ की वजह से,
जो मेरा ही था करतब.

मूल जर्मन से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य

शब्दार्थ
<references/>