Last modified on 21 दिसम्बर 2018, at 02:56

नवसंवत / तोरनदेवी 'लली'

Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:56, 21 दिसम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तोरनदेवी 'लली' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यही सोचती हूँ नवसंवत्!
कैसी होंगी तेरी-
वे नई लहर की घड़ियाँ।
जब सबके हृदयों में होगा, सहज आत्म-अभिमान।
जब सब भाँति प्रदर्शित होगा, माता का सम्मान॥
जब टूट चुकेंगी सारी-
इस दृढ़ बन्धन की कड़ियाँ।
जब नारी सतवन्ती हांेगी, लाज बचाने वाली।
जब शिशुओं के मुख पर होगी, स्वतंत्रता की लाली॥
जब समय आप पहनेगा, सुन्दर मोती की लड़ियाँ।
‘लली’ विश्व में गूंज उठेगा, अमर राष्ट्र का गान॥
जिसके प्रति शब्दों में होगा, देश-धर्म का ज्ञान॥
नव संवत्! तब देखूँगी-
वे तेरी सुख की घड़ियाँ।