भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नवोढ़ा बरनन / रसलीन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बैठी हुती सखियन में सुंदर नवेली बाल
गुरुजन लाज तें छिपाए सब अंग को।
तहाँ आइ रसलीन देखिबे की आस पास
पास की सखीन पाए हास के प्रसंग को।
घूँघट को टारि चितवायो पिय ओर त्योंही
डीठि को उचाय लीनो यों मन अनंग को।
कुलही उतारत ज्यों पीछे ते उचक गहि
बेग ही झपटि के लपटि तकि लंग को॥27॥