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नव वर्ष / जगदीश व्योम

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आमों पर खूब बौर आए
भँवरों की टोली मअडराए
बगिया की अमराई में फिर
कोकिल पंचम स्वर में गाए
फिर उठें गंध के गुब्बारे
फिर महके अपना चन्दन वन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन !

गौरैया बिना डरे आए
घर में घोंसला बना जाए
छत की मुँडेर पर बैठ काग
कह काँव-काँव फिर उड़ जाए
मन में मिसिरी घुलती जाए
सबके आँगन हों सुखद सगुन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन !

बच्चों से छिने नहीं बचपन
वृद्धों का ऊबे कभी न मन
हो साथ जोश के होश सदा
मर्यादित बनी रहे फैशन
जिस्मों की यूँ न नुयाइश हो
बदरंग हो जाए घर आँगन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन !

घाटी में फिर से फूल खिलें
फिर रुके शिकारे तैर चलें
बह उठे प्रेम की मन्दाकिनि
हिम-शिखर हिमालय से पिघलें
सोनी मचले, महिबाल चले
राँझे की हीर करे नर्तन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन !

विज्ञान, ज्ञान के छुए शिखर
पर चले शांति के ही पथ पर
हिन्दी भाषा के पंख लगा
कम्प्यूटर जी पहुँचें घर-घर
वह देश रहे खुशहाल `व्योम'
धरती पर जहाँ प्रवासी जन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन!

थोड़ी-सी राजनीति सुधरे
थोड़ा-सा जन-गण भी सुधरे
मीडिया चले सच के पथ पर
छँट जायँ निराशा के कुहरे
शिक्षा के विस्तृत आँगन में
कुछ और हो सके परिवर्तन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन !

कोरोना दुनिया से जाये
पहले-सी रौनक आ जाये
आतंकवाद का इस जग से
नामोनिशान ही मिट जाये
हर देश-देश का आपस में
कुछ और बढ़ सके हित-चिंतन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन !

हिंदी को जग में मान मिले
अपने घर में पहचान मिले
भारत की सब भाषाओं को
पूरा-पूरा सम्मान मिले
हर बोली के हों शब्द-कोश
घोलें भाषा में मीठापन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन!

-डा. जगदीश व्योम