भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब / ग़ालिब

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:26, 19 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ग़ालिब |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poe...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब
शीशा-ए-मय सर्व-ए-सब्ज़-ए-जू-ए-बार-ए-नग़्मा है

हम-नशीं मत कह कि बरहम कर न बज़्म-ए-ऐश-ए-दोस्त
वाँ तो मेरे नाले को भी ए'तिबार-ए-नग़्मा है