लेखन वर्ष: २००४/२०११
नहीं आसाँ तो मुश्किल ही सही
मुझको मोहब्बत है तुमसे ही
आज न पिघला तो कल पिघलेगा
यह बात हम सुनेंगे तुमसे ही
नाज़ हैं तुमको, ग़ुरूर है मुझे
मेरे दिल की ख़ता है तुमसे ही
आज दूरियाँ हैं तुझमें-मुझमें
कि ज़रूर कल मिलेंगे तुमसे ही
बहता वक़्त इक सिफ़र ही तो है
फिर जो मिला दिया है तुमसे ही