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"नहीं मिटा सकता तो बढ़ा दे दर्द/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

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नहीं मिटा सकता तो बढ़ा दे दर्द
 
नहीं मिटा सकता तो बढ़ा दे दर्द
क्यों न हो यार से तज़किराए-दर्द
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क्यों न करूँ यार से तज़किर:-ए-दर्द<ref>दर्द की चर्चा</ref>
  
 
चुप हूँ तो जलता है मेरा कलेजा
 
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बोलूँ तो लफ़्ज़ों में टपकता है दर्द
 
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आग जो है सो है दिल में अब तक
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कहीं कोई गुलशन न जला दे दर्द
 
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जब भी छुआ है बहुत होता है दर्द
 
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नहीं आसाँ डूब के उबरना उसमें
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इश्क़ जिसको भी कहता है दर्द
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इश्क़ जिसको भी कह देता है दर्द
  
मौत मिले अगर तेरे हाथों मिले
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मौत मिले गर तो तेरे हाथों मिले
रोज़ झूठे ख़ाब मुझ को दिखाये दर्द
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रोज़ क्यों झूठे ख़ाब दिखा दे दर्द
  
रोज़े-अजल हो गर तेरा दीदार
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चाहता हूँ मुझे आज मिटा दे दर्द
  
 
मैं तूफ़ानो-भँवर का मुसाफ़िर हूँ
 
मैं तूफ़ानो-भँवर का मुसाफ़िर हूँ
जाने कितने फ़ितने उठाए दर्द
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‘नज़र’ को इक दफ़ा देख जाओ तुम
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17:54, 10 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

रचनाकाल: २००३/२०११

नहीं मिटा सकता तो बढ़ा दे दर्द
क्यों न करूँ यार से तज़किर:-ए-दर्द<ref>दर्द की चर्चा</ref>

चुप हूँ तो जलता है मेरा कलेजा
बोलूँ तो लफ़्ज़ों में टपकता है दर्द

आग जो है सो है दिल में अब तलक
कहीं कोई गुलशन न जला दे दर्द

हर आस को टोहकर देखा मैंने
जब भी छुआ है बहुत होता है दर्द

नहीं आसाँ डूबकर उबरना उसमें
इश्क़ जिसको भी कह देता है दर्द

मौत मिले गर तो तेरे हाथों मिले
रोज़ क्यों झूठे ख़ाब दिखा दे दर्द

रोज़े-अजल<ref>फ़ैसले के दिन</ref> हो अगर तेरा दीदार
चाहता हूँ मुझे आज मिटा दे दर्द

मैं तूफ़ानो-भँवर का मुसाफ़िर हूँ
जाने कितने फ़ितने<ref>मुसीबतें</ref> उठा दे दर्द

‘नज़र’ को एक दफ़ा देख जाओ तुम
हाँ, वो तुमको अपने गिना दे दर्द

शब्दार्थ
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