नहीं मिला जो जहाँ में जिसको वही उसे खींचता रहा है।
ख़ुदा को मस्जिद में पा गया जो वो दौड़ मयखाने जा रहा है।
वो जिसने माँगी थी सीट मुझसे ये कहके ईश्वर भला करेगा ,
जरा सा आराम पा गया तो मुझी को अब वो भगा रहा है।
दवा से जो ठीक हो रहा था उसे पिलाया पवित्र पानी,
जो दिन में अच्छा भला था कल तक वो रात भर चीखता रहा है।
ख़ुदा का घर सब जिसे समझते वहीं हजारों हुये लापता,
बने रहें नासमझ भले हम वो हिंट दे मुस्कुरा रहा है।
हैं पाप इतना बढ़े के अब तो प्रलय करेंगे स्वयं प्रभो जी,
विफल हुए सब अचूक मंतर तो धर्म ऐसे डरा रहा है।