Last modified on 28 दिसम्बर 2012, at 00:23

नहीं हिली धरती / महेश अनघ

नहीं नहीं भूकंप नहीं है
नहीं हिली धरती

सरसुतिया की छान हिली है
कागा बैठ गया था
फटी हुई चिट्ठी आई है
ठनक रहा है माथा

सींक-सलाई हिलती है
सिन्दूर माँग भरती

हाक़िम का ईमान हिला है
हिली आबरू कच्ची
भीतर तक हिल गई
जशोदा की नाबालिग बच्ची

पिंजरे में आ बैठी है
चिड़िया डरती-डरती

मंदिर नहीं हिला
चौखट पर मत्था काँप रहा है
नंगा भगत देवता की
इज़्ज़त को ढाँप रहा है

हिलती रही हथेली
तुलसी पर दीवट धरती


सूरज का रथ हिला
चन्द्रमा का विमान हिलता है
बिना हाथ पैरों का
देखो आसमान हिलता है


ऐसे में पत्थर दिल धरती
हिल कर क्या करती।