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नहीं है आस रोटी की, बुझे ना प्यास पानी से / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

नहीं है आस रोटी की, बुझे ना प्यास पानी से।
गुजारा हो भला कैसे, किसी की राजधानी से।।

कभी इस हाथ से हमने, महल जिनके बनाये थे।
महल मुमताज की खातिर, पढ़ो उनकी कहानी से।।

बड़ी सुंदर बढ़ी रौनक, कहे इतिहास भी अबतक।
अंगूठा हाथ के काटे, कहो कितनी रवानी से।।

हमें तो याद है अबतक, भुला तुमने दिया मुझको।
इसी रोटी की खातिर टूट बिखरे ज़िंदगानी से।।

अभी तक वक्त को कैसे बिताया एक ‘अवधेश्वर’।
सुनेगा कौन अब मेरी, कहानी बदजुवानी से।।