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नाकामी / साहिर लुधियानवी

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मैने हरचन्द गमे-इश्क को खोना चाहा,

गमे-उल्फ़त गमे-दुनिया मे समोना चाहा!



वही अफ़साने मेरी सिम्त रवां हैं अब तक,

वही शोले मेरे सीने में निहां हैं अब तक।

वही बेसूद खलिश है मेरे सीने मे हनोज़,

वही बेकार तमन्नायें जवां हैं अब तक।

वही गेसू मेरी रातो पे है बिखरे-बिखरे,

वही आंखें मेरी जानिब निगरां हैं अब तक।



कसरते-गम भी मेरे गम का मुदावा न हुई,

मेरे बेचैन खयालों को सुकूं मिल ना सका।

दिल ने दुनिया के हर एक दर्द को अपना तो लिया,

मुज़महिल रूह को अंदाजे-जुनूं मिल न सका।



मेरी तखईल का शीराजा-ए-बरहम है वही,

मेरे बुझते हुए एहसास का आलम है वही।

वही बेजान इरादे वही बेरंग सवाल,

वही बेरूह कशाकश वही बेचैन खयाल।



आह! इस कश्म्कशे-सुबहो-मसा का अंजाम

मैं भी नाकाम, मेरी स‍यी-ए-अमला भी नाकाम॥