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नागरजा / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सभा लैगे<ref>बैठी</ref> द्वारिका, सभा लैगे गोविन्द,
सोवन<ref>सोना</ref> द्वारिका होली, सभा लैगे गोविन्द।
सभा बैठी गैन, तेतीस करोड़ देवता,
सभा बैठी गैन, सोल सोऊ राणी।
इनो रइ भगीवान, गर्वियों का गर्व चलैन,
पाप्यों का मोचद पाप, बिर्बलियों को छै बल।
राण्यों को रौंसिला<ref>रसिया</ref> छई, फूलू कू हौंसिया<ref>शौकीन</ref>।
धनि पारबरम, मैं लेन्दू तेरु नऊं,
तेरो नऊं लेन्दू, सांझ सबेर।
तेरो नऊं लीक संकट कटेन्दी, बिप्ता बंटेंदी,
दुख होन्दू दूर, काया होंदी कंचन।
इना रैन भगीवान् राँडू का मालिक,
छोरौं का बाप, अनाथू का नाथ।
नंगा देखी खाणू नी खायो,
भूखा देखी वस्त्र नी लायो।
तिन लिने जन्म देवकी का कोख,
देवकी का कोख कंसकोट राजा मा
वैरियों की भूमि, मामा की मथुरा।
माता तेरी देवकी, पिता वसुदेव।
सुण्याला<ref>सुन लो</ref> कंसू तुम देवकी का आठवां गर्भ,
होण कंसू को छै।
एक गर्भ होये तौन नदी सौंप करे,
दूजो गर्भ होये तौन नदी सौंप करे,
तीजों चौथो पांचों सातों गर्भ होये,
तौन नदी सौंप करे।
तब ह्वेन भगवान आठवाँ गर्भ।
तेरी जिया<ref>माता</ref> देवकी एको लगे मास,
तेरी जिया देवकी दूजो लगे मास।
कंस कोट राजा मां बुरो ठाण्याले,
कंस कोट लग अब शीशा को मेलाण<ref>इकट्टा करना</ref>

सौ मन शीशा की गागर बणैले।
चलीगे देवकी तब निकट जमुना,
ल्यौ वैणी<ref>बहन</ref> देवकी गागर भरी।
नौ दिन नौ राती गागर नी भरेणी,
भरेण क भरेगी, मैं कनै उठौलू?
कायरी होइगे देवकी राणी,
इन रया भगवान निर्धन्यों का धनी,
गर्वियों का गर्व करदू चूर।
तै दिन भगवान, निरणी को बालो,
सु गर्भ छुई लांदो,
सुन जिया कायरो नी होणू।
तै दिन देवकी राणी गागर उठौंदी।
इनी माया तेरी भगवा-
कनी ह्वैगे गागर बुरांस को-सी फूल।
ल्या भाई कंसू ई गागर उठावा,
सुणीक ंस पिछुंडा<ref>पीछे</ref> ढलीग्या<ref>ढुलका</ref>।
दस मास लैगे श्यामल भगवान,
वीं देवकी लैगे बैठण्या वेदन,
पिता वसुदेव तौन बंदीगिरै घरीले।
भदर मास छयो, शुक्ल पक्ष,
रोहणी नक्षत्र छयो बुधबार।
कई पैरादार छा धर्यां, सुण्याला पैरादोरु<ref>पहरेदार</ref> तुम
जु होलू गर्भ तै करिया हाजिर।
वसुदेव सुणीक इनो कुरोध लांदो,
सुण्याला कंसू तुम-
बैठीक विनत, उठीक अरज।
न लया कंसू तुम कन्या को पातक।
तब भगवान पृथ्वी पैदा नी होंदा,

तेरी जिया छई कली-बेकली।
मैं त मेरी माता पृथ्वी पैदा होन्दू-
तू कायरी ना होई मेरी जिया।
तब कृष्ण द्वारिकानाथ पैदा होई गैन।
देवता सभी खुश होइन, पिता की बेड़ी टूटीन।
चली आयो स्यो देवकी का पास,
क्या होये राणी तेरा गर्भ?
तब भगवान इनो बोदः
सुणा सुणा मेरा मात पितौं मेरी अरज,
मैं कू लीजा पिता जी धौ<ref>मौसी, यशोदा</ref> बै का पास।
नंदू मौसा का त डेरा।
तै वक्त भगवान उठैले पिता न,
रस्ता लगी गैन, आईन अधवार।
निकट जमुना आईन।
तब भगवान का चरण छूण,
जमुना अथाह होई गैगे।
पिता वसुदेव को उत्सा ख्वैगे<ref>खो गया</ref>।
कनु<ref>कैसे</ref> कैक रे बाला मैंन पार ली जाणी?
सुणा मेरा पिता जी कायरो नी होई।
कृष्ण बालो घनश्याम खुटी बढ़ौंद,
चरण चूमीक जमुना जी घटी गैन।
चलदा चलदा तब स्ये पहुँच्या-
नंदू का बांजा<ref>ऊसर</ref> बैराट<ref>जगह, गोष्ठ</ref>।
जनम का औता<ref>निपूता</ref> था स्ये, कर्म का नाटा<ref>खोटा</ref>।
तै दिन बोदो नन्दू मौसा-
ये बांजा बैराट बाला
क्या खालू<ref>खाना</ref> तू, क्या त पेलो<ref>पीना</ref>?

शब्दार्थ
<references/>