किरीट सवैया
(व्याज से वसंत-श्री का वर्णन)
नागर से हैं खरे तरु कोऊ, लिएँ कर-पल्लव मैं फल-फूलन ।
पाँवड़े साजि रहे हैं कोऊ, कोऊ बीथिन बीच पराग-दुकूलन ॥
फूल झरैं ’द्विजदेव’ कोऊ, पुर-कानन माँहिं कलिंदजा-कूलन ।
आगम मैं ऋतुराज के आज, सबै बिधि खोए सबै निज सूलन ॥२६॥